Puratatva Vibhag Mandir
देवलगढ़ मन्दिर समूह, देवलगढ़
ग्राम – देवलगढ़
विकासखण्ड – खिर्सू
तहसील – श्रीनगर
जनपद – पौड़ी
स्थिति एवं पहुंच मार्ग:- देवलगढ़ नामक स्थल गढ़वाल राजाओं की प्रचीन राजधानी रही र्है, जनपद मुख्यालय से यह स्थल लगभग 50 कि0मी0 की दूरी पर है, श्रीनगर से भी मोटरमार्ग द्वारा देवलगढ़ पहुंचा जा सकता है।
पुरातात्विक महत्व:- देवलगढ़ में गौरा देवी तथा लक्ष्मी नारायण के प्राचीन मन्दिर हैं, इन दोनों मन्दिरों की तलछन्द योजना में गर्भगृह अन्तराल तथा मण्डप का प्राविधान है, ऊघ्र्वछन्द योजना में ये दोनों मन्दिर वेदीबन्द, जंघा भाग तथा ागर शैली के त्रिरथ रेखा शिखर युक्त हैं, इन मन्दिरों का शिखर कर्ण भाग पर भूमि आमलक विभाजित है, दोनों मन्दिरों के शिखर पर आमलसारिका स्थापित है, गौरादेवी मन्दिर के शीर्ष पर काष्ट छत्रावली भी निर्मित है, इन मन्दिरों में लक्ष्मी-नारायण, महिषमर्दिनी दुर्गा, जैन प्रतिमा वैष्णव तथा गणेश की प्रतिमाये स्थापित है, देवलगढ़ नाथ सम्प्रदाय का प्रमुख केन्द्र रहा है, यंहा पर सत्यनाथ तथा काल भैरव के उत्तर मध्यकालीन मन्दिर निर्मित हैं, यहां पर साम की माण्डा नामक एक द्विमंजिला भवन भी आकर्षक है, इसके अतिरिक्त नाथ सम्प्रदाय से सम्बन्धित प्राचीन समाधियां भी निर्मित हैं, जिन्हें मन्दिर वास्तु शैली के अनुरूप निर्मित किया गया है, देवलगढ़ में गौरा देवी तथा लक्ष्मी नारायण मन्दिर 11 वीं -12 वीं शताब्दी में निर्मित प्रतीत होते है।
सोम की माण्डा:- गौरा देवी मन्दिर के दक्षिण में ‘‘सोम की माण्डा’’ नाम से प्रसिद्ध द्वितलीय मण्डप है। कहा जाता है कि राजा अजयपाल इसी मण्डप में बैठकर राजकाज किया करते थे। और अपने गुरू सत्यनाथ भैरव की दिशा में मुख करके ध्यानस्थ होते थे। संरचना व नक्काशी की दृष्टि से यह पाषाणीय मण्डप अपने आप में एकमात्र उदाहरण है।
शिव मन्दिर पैठाणी
ग्राम – पैठाणी
विकासखण्ड – थलीसैंण
तहसील – थलीसैंण
जनपद – पौड़ी गढ़वाल
स्थिति एवं पहुंच मार्ग:- जनपद मुख्यालय से लगभग 50 कि0मी0 की दूरी पर पैठाणी ग्राम स्थित है, यह स्थल पौड़ी- रामनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है, गांव के समीप दो लघु नदियों के संगम के निकट शिव मन्दिर पैठाणी अवस्थित है।
पुरातात्विक महत्व:- पैठाणी शिवालय पंचायतन शैली के अनुरूप निर्मित है, मुख्य मन्दिर शिव का है, तथा चारों कोनों पर सूर्य, विष्णु, गणेश, तथा शक्ति के अपेक्षाकृत छोटे आकार के मन्दिर अवस्थित हैं, मुख्य मन्दिर की तलछन्द योजना में गर्भगृह अन्तराल तथा मण्डप का प्राविधान है, गर्भगृह में पीठिका युक्त शिव लिंग स्थापित है, मण्डप में वीणाधर शिव तथा महावराह गणेश आदि की प्रतिमायें स्थापित है, ऊघ्र्वछन्द योजना की दृष्टि से लगभग 6.50 मीटर ऊचें मन्दिर में वेदीबन्ध रथिका युक्त जंघा भाग निर्मित है, शिखर त्रिरथ विन्यास युक्त है, शिखर शीर्ष पर आमलक सुशोभित है, शुकनासिका के शीर्ष पर गजसिंह स्थापित है, मुख्य मन्दिर के चारों कोनों पर स्थित मन्दिरों में गर्भगृह तथा अन्तराल का प्राविधान है, शैली के अनुसार पैठाणी के मन्दिर 9 वीं शताब्दी में निर्मित प्रतीत होते है।
लक्ष्मी-नारायण मन्दिर समूह, सुमाड़ी
ग्राम – सुमाड़ी
विकासखण्ड -खिर्सू
तहसील – श्रीनगर
जनपद – पौड़ी गढ़वाल
स्थिति एवं पहुंच मार्ग:- जनपद मुख्यालय से लगभग 30 कि0मी0की दूरी पर बस द्वारा सुमाड़ी गांव पहुंचा जा सकता है, ग्राम के मध्य में पानी के स्ता्रेत के समीप लक्ष्मी-नारायण मन्दिर समूह स्थित है, इस मन्दिर समूह में 10 प्रस्तर निर्मित मन्दिर है।
पुरातात्विक महत्व:- मुख्य मन्दिर की तलछन्द योजना में गर्भगृह अन्तराल तथा मण्डप का प्राविधान है, अन्य मन्दिर मात्र गर्भगृह और अर्धमण्डप युक्त है, कुछ मन्दिरों के गर्भगृह फुल्लपद्म युक्त वितान से सज्जित है, अर्धमण्डप के स्तम्भ चैकोर कुम्भिका पर आधारित है, स्तम्भों का निचला भाग अष्टकोणीय तथा ऊपरी भाग चतुष्कोणीय है, सभी मन्दिरों की ऊघ्र्वछन्द योजना में सादे जंघा भाग का निर्माण किया गया है जंघा के ऊपर एक सादा अन्तरपटा छोड़कर नागर शैली के त्रिरथ रेखा शिखर निर्मित है, शिखर का कर्णभाग भूमि अमलकों से सज्जित है, नागर शैली युक्त इन मन्दिरों के शीर्ष पर आमलक सुशोभित है, लक्ष्मी-नारायण मन्दिर समूह में सर्वाधिक प्रतिमायें वैष्णव है, इनमें से पांच मूर्तियां लक्ष्मी-नारायण की है, अन्य मूर्तियों में सूर्य, पार्वती, और गणेश की मूर्तियां मुख्य है, मन्दिरों एवं मूर्तियों के शैली के अनुसार सुमाड़ी गांव के उक्त मन्दिर एवं मूर्तियां 10-11 वीं शताब्दी में निर्मित प्रतीत होते हैं।
वैष्णव मन्दिर समूह, देवल
ग्राम – देवल
विकासखण्ड -कोट
तहसील – पौड़ी
जनपद – पौड़ी गढ़वाल
स्थिति एवं पहुंच मार्ग:- जनपद मुख्यालय से 14 कि0मी0 की दूरी पर कोट विकासखण्ड के समीप देवल गांव स्थित है, गांव के मध्य में प्राचीन मन्दिरों का समूह अवस्थित है।
पुरातात्विक महत्व:- ग्राम देवल में द्वादश मन्दिरों का समूह है, कालक्रम की दृष्टि से इस मन्दिर समूह को दो वर्गोमें विभक्त किया जा सकता है, प्रथम वर्ग के अन्तर्गत मुख्य मन्दिर तथा शिव मन्दिर हैं, इन दोनों मन्दिरों की तलछन्द योजना में क्रमशः गर्भगृह, मण्डप तथा केवल गर्भगृह हैं, ऊघ्र्वछन्द योजना भी सादी है, इन मन्दिरों में जगती से शिखर तक की माप एक समान है, दोनों मन्दिरों के शिखर स्लेटी प्रस्तरों से आच्छादित हैं, मन्दिर के गर्भगृह में विष्णु, ब्रहमा, लक्ष्मी-नारायण और महिषमर्दिनी की प्रतिमायें स्थापित है, प्रथम वर्ग के मन्दिर 18-19 वीं शताब्दी के है।
देवल मन्दिरों का दूसरा वर्ग प्राचीन देवालयों युक्त हैं, इन मन्दिरों की तलछन्द योजना में गर्भगृह तथा दो स्तम्भों पर आधारित अर्धमण्डप युक्त है, ऊघ्र्वछन्द योजना की दृष्टि से सभी मन्दिर जगती, वेदीबन्द, जंघा भाग तथा जागर शैली के त्रिरथ रेखा शिखर युक्त है, इन मन्दिरों के गर्भगृह के वितान फुल्लपद्म युक्त हैं, शिखर शीर्ष चन्द्रिका तथा आमलसारिका स्थापित है, अर्धमण्डप के शीर्ष पर सादी शुकनासिका निर्मित है, मन्दिरों के शिखर कर्ण भाग पर भूमि आमलकों से सज्जित है, शैली की दृष्टि से देवल के इन प्राचाीन मन्दिरों को 12-13 वीं शताब्दी में निर्मित माना जा सकता है।



घंडियाल मन्दिर, बूढ़ाभरसार
ग्राम – कपरोली
विकासखण्ड – थलीसैंण
तहसील – थलीसैंण
जनपद – पौड़ी गढ़वाल।
स्थिति एवं पहुंच मार्ग:- ग्राम कपरोली तक पक्की सड़क तथा कपरोली से 06 कि0मी0 पैदलमार्ग।
पुरातात्विक महत्व – यहां पर आयताकार वास्तु विन्यासयुक्त बल्लभी शैली का शिखरयुक्त मन्दिर है, तलछन्द योजना में यह मन्दिर आयताकार गर्भगृह अन्तराल एवं मण्डपयुक्त है। ऊध्र्वछन्द योजना में वेदीबन्द, जंधाभाग तथा गजपृष्ठाकृति शिखर निर्मित किया गया है, शिखर का शीर्ष भाग पुर्ननिर्मित है, मन्दिर में संस्कृत चन्द्रशाला में लकुटधारी लकुलीश का अंकन किया गया है।
कट्केश्वर महादेव
ग्राम – घसिया महादेव
तहसील- श्रीनगर,
ब्लाक – खिर्सू, श्रीनगर
जनपद – पौड़ी
स्थिति एवं पहुच मार्ग:- श्रीनगर से 01 कि0मी0 लगभग ब्रदीनाथ, केदारनाथ मार्ग पर सड़क के समीप ही घसिया महादेव ग्राम स्थित है, ऋषिकेश से इसकी दूरी लगभग 140 कि0मी0 है यह मन्दिर कट्केश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्व है।
पुरातात्विक महत्व:- यह पौराणिक मन्दिर है, इसका उल्लेख स्कन्द पुराण में भी है, इसमें स्वयं भू लिंग स्थित है, इसमें नव निर्मित गणेश-पार्वती की प्रतिमाएं है।
नागेश्वर महादेव
ग्राम – नागेेश्वर महादेव
तहसील- श्रीनगर,
ब्लाक – खिर्सू, श्रीनगर
जनपद – पौड़ी
स्थिति एवं पहुच मार्ग:- श्रीनगर में नागेश्वर मोहल्ला गुरूद्वारा रोड, श्रीनगर में स्थित है, ऋषिकेश से इसकी दूरी लगभग 140 कि0मी0 है।
पुरातात्विक महत्व:- यह पौराणिक मन्दिर है, इसका उल्लेख स्कन्द पुराण में भी है, इसमें स्वयं भू लिंग स्थित है, इसमें नव निर्मित गणेश-विष्णु शनिदेव की प्राचीन प्रतिमाएं है।
डांडा नागराजा मन्दिर
ग्राम – सिल्सू
तहसील – पौड़ी
वि0ख0 – कोट
जनपद – पौड़ी गढ़वाल।
स्थिति एवं पंहुच मार्ग:- यह स्थान रेलवे स्टेशन कोटद्वार से लगभग 100 कि0मी0 की दूरी पर स्थित है, पौड़ी शहर से लगभग 45 कि0मी0 की दूरी पर अदवानी-बगानीखाल मोटरमार्ग पर यह मन्दिर पड़ता है, बनेलस्यूं पट्टी के चार गांव नौड़-रीई-सिल्सू-लसेरा का प्रसिद्व घाम है। बैशाख/ अप्रैल 13 व 14 तारीख को यहां पर बैशाखी के दिन मेले का आयोेेेेेेेेेजन किया जाता है।
पौराणिक महत्व – पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान कृष्ण को यह स्थान खूब भाता था जिससे उन्होने यहां पर नाग का रूप धारण करके लेट-लेट कर यहां की परिक्रमा की तभी से मन्दिर का नाम डांडा नागराजा मन्दिर पड़ गया जो कि भगवान विष्णु का ही एक रूप र्है।
क्यूंकालेश्वर मन्दिर पौड़ी।
ग्राम नगर पालिका क्षेत्र पौड़ी
विकासखण्ड – पौड़ी
तहसील – पौड़ी
जनपद – पौड़ी।
स्थिति एवं पंहुच मार्ग – यह स्थान मण्डल मुख्यालय पौड़ी शहर से 03 कि0मी0 की दूरी पर कएडोलिया-रांसी मोटर मार्ग पर स्थित है, रेवले स्टेशन कोटद्वार से यहां की दूरी लगभग 109 कि0मी0 की दूरी बस/जीप से तय कर पंहुचा जा सकता है क्यंूकालेश्वर मन्दिर का यह स्थान अत्यन्त मनमोहक व सुरम्य है।
पौराणिक महत्व – यह मन्दिर पौराणिक मन्दिर है, मन्दिर के गर्भ गृह व मण्डप का प्राविधान है, गर्भ गृह मे शिवलिंग अवस्थित है मन्दिर के चारों ओर परिक्रमापथ निर्मित किया गया है, यह स्थान मन्दिर कीनाश पर्वत की तलहटी पर बसा है, मन्दिर परिसर में एक चबूतरा निर्मित है, जिसे जार्ज पंचम के सम्मान में बनाया गया है, वहां पर शिलापट्ट में जार्ज पंचम के नाम का उल्लेख है, पर्यटन की दृष्टि से भी यह स्थान अत्यन्त महत्वपूर्ण है, यहां पर बांज, देवदार व काफल के पेडों का धना जंगल है।
कमलेश्वर महादेव
ग्राम – कमलेश्वर महादेव
ब्लाक – खिर्सू, श्रीनगर
जनपद – पौड़ी
स्थिति एवं पहुच मार्ग:- श्रीनगर में कमलेश्वर मोहल्ला
स्थित है, ऋषिकेश से इसकी दूरी लगभग 140 कि0मी0 है।
पुरातात्विक महत्व:- यह पौराणिक मन्दिर है, इसका उल्लेख स्कन्द पुराण में भी है, इसमें स्वयं भू लिंग स्थित है, इसमें नव निर्मित गणेश-पार्वती की प्रतिमाएं है। और माह नवम्बर मे यहा बैकुण्ड चर्तुदर्शी को मेला का आयोजन किया जाता है।
लक्ष्मी नारायण मन्दिर
ग्राम – लक्ष्मी नारायण
नगर पालिका श्रीनगर गढ़वाल
तहसील-श्रीनगर
ब्लाक – खिर्सू, श्रीनगर
जनपद – पौड़ी
स्थिति एवं पहुच मार्ग:- श्रीनगर में नागेश्वर मोहल्ला गुरूद्वारा रोड, श्रीनगर में स्थित है, ऋषिकेश से इसकी दूरी लगभग 140 कि0मी0 है।
पुरातात्विक महत्व:- यह पौराणिक मन्दिर है, और शकरांचार्य द्वारा निर्मित है, और इसमे लक्ष्मी-नारायण की प्राचीन प्रतिमाए स्थापित है, मंन्दिर पाषाण प्रस्तरो से निर्मित है, मन्दिर में गर्भ गृह व मण्डप का प्रविधान है। मन्दिर की छयावली काष्ठ से निर्मित है छत स्थानीय पठारों से बनायी गयी है।
एकेश्वर महादेव
ग्राम – पातल
ब्लाक- एकेश्वर तहसील-चैबटृाखाल
जनपद – पौड़ी
स्थिति एवं पहुच मार्ग:- यह पौड़ी से लगभग 55 कि0मी0लगभग
पुरातात्विक महत्व:- यह पौराणिक मन्दिर है, किंवदंती हे कि यहां पाडवों ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिये तपस्या की थी मंदिर का निर्माण शंकराचार्य जी द्वारा कराया गया था।हांलाकि मन्दिर का निर्माण आधुनिक शैली का है मन्दिर में स्वंयभू शिवलिगं स्थापित है।