नीलकंठ महादेव मंदिर
ऋषिकेश से 32 कि.मी. बैराज के माध्यम से और 22 किलोमीटर राम झूला के माध्यम से दूर स्थित यह जगह धार्मिक उत्साह, पौराणिक महत्व और खूबसूरत परिवेश मिला जुला संगम है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, इस जगह का नाम भगवान शिव से लिया गया है। यह माना जाता है कि यहां भगवान शिव ने जहर का सेवन किया था, जो ‘समुद्र मंथन’ के दौरान उत्पन्न हुआ था। इस वजह से भगवन शिव का गला रंग में नीला हो गया था, इसलिए भगवन शिव को नीलकंठ नाम दिया गया था। सदियों पुराने मंदिर अपनी आकाशीय आभा और पौराणिक महत्व को संजोय रखे हैं। नीलकंठ महादेव स्वर्गश्राम से 22 किमी दूर है। 12 कि.मी. ट्रैक्केबल सड़क घने जंगलों से घिरी हुई है । सिंचाई और वन विभाग के विश्राम गृह यहाँ पर उपलब्ध है।
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श्री कोटेश्वर महादेव मंदिर
1428 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर में बैऔलाद जोड़ों के बीच बहुत प्रसिद्ध है । मंदिर में एक शिवलिंग है जो पूर्व में हिमालय पर्वतमाला, पश्चिम में हरिद्वार और दक्षिण में सिद्ध पीठ मेदानपुरी देवी मंदिर से घिरा हुआ है। किंवदंती यह है कि खुदाई करते समय एक गांव की महिला ने शिव लिंग पर अनजाने ने चोट कर दी थी तब एक दिव्य आवाज सुनाई पड़ी और लोगों को शिव को समर्पित मंदिर बनाने का निर्देश प्राप्त हुआ । तदनुसार, कोटेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण किया गया । यह माना जाता है कि श्रावण के पूरे महीने पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ महामृतुन्जय मंत्र का पालन करने वाले बैऔलाद जोड़ों को भगवान का आशीष मिलता है और उनकी इच्छाएं पूर्ण होती हैं।
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