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भोगोलिकी

पौड़ी गढ़वाल, जो की उत्तराखंड राज्य का एक जिला है, 5230 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है और 29 45′ से 3015′ अक्षांश और 78024′ से 7923′ ई देशांतर के बीच स्थित है। यह जिला उत्तर में चमोली, रुद्रप्रयाग और टिहरी गढ़वाल, दक्षिण में बिजनौर और उधमसिंह नगर, पूर्व में अल्मोड़ा और नैनीताल, पश्चिम में देहरादून और हरिद्वार जिले के सटा हुआ है। पौडे जिला प्रशासनिक इकाई के रूप में १३ तहसीलों, पौड़ी, लैंसडाउन, कोटद्वार, थलीसैण, चौबटटाखाल, श्रीनगर, सतपुली, धुमाकोट,यमकेश्वर, चाकीसैण, बीरोंखाल, जाखणीखल और रिख्निख्हल और पंद्रह विकास खंड जैसे कोट, कल्जीखाल, पौड़ी, पौबो, थलीसैण, बीरोंखाल, द्वारीखाल, दुगड्डा, जयहरीखाल, एकेश्वर, रिखणीखाल, यमकेश्वर, नैनीडंडा, पोखडा और खिर्सू में  विभाजित है ।

पौड़ी, पौड़ी गढ़वाल जिले का मुख्यालय है और यह 1650 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। और इसकी जनसंख्या 24,743 है । यह  देवदार के जंगल और चोटी के उत्तरी ढलान पर स्थित है, जो बर्फ-पहने पहाडी श्रृंखलाओं के समान प्रतीत होता है। अलकनंदा के अलावा, नययार नदी ज़िले की प्रमुख नदी है ।  नययार अलकनंदा की प्रमुख सहायक नदी है, जो सतपुली में पूर्वी और पश्चिमी नययार  के संगम के बाद बनती है। दोनों नययार दुदातोली सीमा से उत्पन्न होती हैं और दक्षिणी तक बहती हैं ।  नययार में सबसे ऊंची पर्वतमालाएं थलीसैण  (दुदातोली-चाकिसैन चोटी), बैजरो (पोखरा-दमदेवल चोटी), खिर्सू-मंडाखल (पौड़ी-अदवानी-कांसखेत चोटी), बीरोंखाल (लेंसडाउन-गुमखाल-द्वारीखाल चोटी) और रतुआदाब (दुगड्डा -कांडी चोटी) हैं ।

जलवायु..

पौड़ी का मौसम पुरे वर्ष के दौरान सुखद बना रहता है। जून में अधिकतम तापमान कोटद्वार में 45 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया जाता है, जबकि दुधातोली में उच्चतम तापमान 25 डिग्री सेल्सियस तक ही जाता है। जनवरी में न्यूनतम तापमान  1.3 डिग्री सेल्सियस तक जाता है । क्षेत्र के लिए औसत तापमान 25 डिग्री सेल्सियस से 30 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है। उच्चे पहाड़ी इलाकों के घने जंगलों में आम तौर पर जून के मध्य में पर्याप्त वर्ष होती है जो सितंबर के मध्य तक होती रहती है। सर्दियों में भी कभी-कभी वर्षा  हो जाती है ।  जिले में औसत वार्षिक वर्षा 218 सेंटीमीटर है, जिसमें से लगभग 90 प्रतिशत वर्ष आमतौर पर मानसून पर आधारित होती है। आमतौर पर आर्द्रता 54 और 63 प्रतिशत के बीच होती है। उचाई वाले क्षेत्रो में बर्फ बरी हो जाती है जब तापमान में काफी गिरावट दर्ज की जाती है ।

मिट्टी ..

क्षेत्र की मिट्टी या तो पैडोजेनेटिक प्रक्रियाओं के माध्यम से या बहा के आई मिट्टी से बनी है। पैडोजेनेटिक मिट्टी वो मिट्टी होती है जो वायुमंडलीय, भौतिक और रासायनिक अपक्षय और रॉक स्लाइडों के अनावरण की लंबी प्रक्रिया के पश्चात बनती है। इस प्रकार की मिट्टी ग्रैनाइट गनीज़िक, स्किस्टोज और फ़िलीट चट्टानों से प्राप्त होती है। इन मिट्टी में  सिलिका का उच्च प्रतिशत होता है, जबकि चूना पत्थर से बनी मिट्टी में कैल्शियम कार्बोनेट की मात्रा अधिक होती है। बहा के आई मिट्टी लहरों के द्वारा लायी जाती है और एक स्थान पर इकठठा कर दी जाती है, जबकि इनका मूल स्रोत और चट्टान दूर स्थित होता हैं। इनमें से कुछ मिट्टी  हिमनद और फ्लुवियो-ग्लेशियल का मिश्रित रूप होता है।  इस प्रकार की मिटटी बहुत उपजाऊ हैं। जंगल की भूरे रंग की मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ प्रतिशत बहुत होता है। काटील मिट्टी पत्थरिली, अपरिपक्व और बेहद खराब है। अप्रायन की मिट्टी पथरीली और चिकनी रेतीली होती  हैं तालाबो की मिट्टी भूरे रंग के रंग के साथ क्लेय बनावट की  होती है।

स्थलाकृति

पौड़ी गढ़वाल की स्थलाकृति बड़ी बीहड़ है और भाबर की संकीर्ण पट्टी को छोड़कर पूरा क्षेत्र पहाड़ी है। क्षेत्र का उच्चतम बिंदु 3116 मीटर दुदातोली में  है और क्षेत्र का सबसे कम बिंदु 295 मीटर चीला के पास  है। सबसे ऊंचे स्तर पर गांव दोबरी स्थित  है, जो 2480 मीटर की उचाई पर बसा है। नदी के किनारों की क्रॉस प्रोफाइल खड़ी घाटी के किनारों के साथ उत्तल रूप में दिखती है। घाटियों के किनारों पर पानी के झरने और सीढ़ीदार खेत होते हैं। गांव मुख्य रूप से नदी के किनारों की ओर के ढलान पर बसे होते है। थलीसैण विकास खंड में जंगल का आच्छादन सबसे अधिक व पौड़ी विकास खंड में जंगल का आच्छादन सबसे कम है। इस क्षेत्र के अधिकांश हिस्से को सड़क के द्वारा जिला मुख्यालय से जोड़ा गया  है। इनमें से अधिकतर सड़कों अभी तक पक्की  नहीं हैं और कुछ मुख्य सड़कों को छोड़कर बाकी सड़के भूस्खलन की जद में  हैं। पश्चिमी हिमालय के भाग के रूप में पौड़ी गढ़वाल जिला जंगलों, घास के मैदान, सवाना घास के मैदान, दलदल और नदियों, साथ ही वन्य जीवन, भूविज्ञान और कई अन्य फाइटो-भौगोलिक जटिल विविधता के विपरीत  पारिस्थितिक विशेषताओं का एक विशिष्ट गुण प्रस्तुत करता  है। विभिन्न स्थलाकृतिक और जलवायु कारकों की घटना के परिणामस्वरूप जिले में उल्लेखनीय जैव विविधता है, जिसके परिणामस्वरूप वनस्पति भी इसके विभिन्न भागों में भिन्न भिन्न है तथा ये  जिले के सबसे मूल्यवान प्राकृतिक संसाधन भी हैं।